श्री पार्श्वनाथ चालीसा


Shri 1008 parasnath bhagwan, shrirampur



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श्री पार्श्वनाथ चालीसा

शीश नवा अरिहंत को, सिद्धन करुं प्रणाम |

उपाध्याय आचार्य का ले सुखकारी नाम |

सर्व साधु और सरस्वती, जिन मन्दिर सुखकार |

अहिच्छत्र और पार्श्व को, मन मन्दिर में धार ||


|| चौपाई ||


पार्श्वनाथ जगत हितकारी, हो स्वामी तुम व्रत के धारी |

सुरनर असुर करें तुम सेवा, तुम ही सब देवन के देवा |

तुमसे करम शत्रु भी हारा, तुम कीना जग का निस्तारा |

अश्वसैन के राजदुलारे, वामा की आँखो के तारे |

काशी जी के स्वामी कहाये, सारी परजा मौज उड़ाये |

इक दिन सब मित्रों को लेके, सैर करन को वन में पहुँचे |

हाथी पर कसकर अम्बारी, इक जगंल में गई सवारी |

एक तपस्वी देख वहां पर, उससे बोले वचन सुनाकर |

तपसी! तुम क्यों पाप कमाते, इस लक्कड़ में जीव जलाते |

तपसी तभी कुदाल उठाया, उस लक्कड़ को चीर गिराया |

निकले नाग-नागनी कारे, मरने के थे निकट बिचारे |

रहम प्रभू के दिल में आया, तभी मन्त्र नवकार सुनाया |

मर कर वो पाताल सिधाये, पद्मावति धरणेन्द्र कहाये |

तपसी मर कर देव कहाया, नाम कमठ ग्रन्थों में गाया |

एक समय श्रीपारस स्वामी, राज छोड़ कर वन की ठानी |

तप करते थे ध्यान लगाये, इकदिन कमठ वहां पर आये |

फौरन ; ही प्रभु को पहिचाना, बदला लेना दिल में ठाना |

बहुत अधिक बारिश बरसाई, बादल गरजे बिजली गिराई |

बहुत अधिक पत्थर बरसाये, स्वामी तन को नहीं हिलाये |

पद्मावती धरणेन्द्र भी आए, प्रभु की सेवा मे चित लाए |

धरणेन्द्र ने फन फैलाया, प्रभु के सिर पर छत्र बनाया |

पद्मावति ने फन फैलाया, उस पर स्वामी को बैठाया |

कर्मनाश प्रभु ज्ञान उपाया, समोशरण देवेन्द्र रचाया |

यही जगह अहिच्छत्र कहाये, पात्र केशरी जहां पर आये |

शिष्य पाँच सौ संग विद्वाना, जिनको जाने सकल जहाना |

पार्श्वनाथ का दर्शन पाया सबने जैन धरम अपनाया |

अहिच्छत्र श्री सुन्दर नगरी, जहाँ सुखी थी परजा सगरी |

राजा श्री वसुपाल कहाये, वो इक जिन मन्दिर बनवाये |

प्रतिमा पर पालिश करवाया, फौरन इक मिस्त्री बुलवाया |

वह मिस्त्री मांस था खाता, इससे पालिश था गिर जाता |

मुनि ने उसे उपाय बताया, पारस दर्शन व्रत दिलवाया |

मिस्त्री ने व्रत पालन कीना, फौरन ही रंग चढ़ा नवीना |

गदर सतावन का किस्सा है, इक माली का यों लिक्खा है |

वह माली प्रतिमा को लेकर, झट छुप गया कुए के अन्दर |

उस पानी का अतिशय भारी, दूर होय सारी बीमारी |

जो अहिच्छत्र ह्रदय से ध्वावे, सो नर उत्तम पदवी वावे |

पुत्र संपदा की बढ़ती हो, पापों की इक दम घटती हो |

है तहसील आंवला भारी, स्टेशन पर मिले सवारी |

रामनगर इक ग्राम बराबर, जिसको जाने सब नारी नर |

चालीसे को ‘चन्द्र’ बनाये, हाथ जोड़कर शीश नवाये |



नित चालीसहिं बार, पाठ करे चालीस दिन |

खेय सुगन्ध अपार, अहिच्छत्र में आय के |

होय कुबेर समान, जन्म दरिद्री होय जो |

जिसके नहिं सन्तान, नाम वंश जग में चले ||

Best jain bhajan.

तुने खुब दिया भगवान, तेरा बहोत बड़ा एहसान,

गुरू साथ - साथ चलना

मंगल-मंगल होय जगत में, सब मंगलमय होय |

हर जनम में बाबा तेरा साथ चाहिये, सिर पे मेरे बाबा तेरा हाथ चाहिये,

Naam hai tera taran hara kab tera darshan hoga

रात्रं दिवस देवा तुझी मूर्ति ध्यानात

गुरु मेरी पूजा गुरु जिनेंद्र

भजन कर मस्त जवानी में, भुडापा किसने देखा है,

पार्श्व प्रभु प्यारा - तमारी धुन लागी

चँवलेश्वर पारसनाथ म्हारी नैया पार लगाजो

Best jain bhajan.

तुने खुब दिया भगवान, तेरा बहोत बड़ा एहसान,

गुरू साथ - साथ चलना

मंगल-मंगल होय जगत में, सब मंगलमय होय |

हर जनम में बाबा तेरा साथ चाहिये, सिर पे मेरे बाबा तेरा हाथ चाहिये,

Naam hai tera taran hara kab tera darshan hoga

रात्रं दिवस देवा तुझी मूर्ति ध्यानात

गुरु मेरी पूजा गुरु जिनेंद्र

भजन कर मस्त जवानी में, भुडापा किसने देखा है,

पार्श्व प्रभु प्यारा - तमारी धुन लागी

चँवलेश्वर पारसनाथ म्हारी नैया पार लगाजो